इस गांव को जमाई का गांव कहा जाता है - जाने क्यों



दोस्तों जैसा कि आप जानते हैं कि शादी के बाद लड़कियां ही ससुराल जाती हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां बेटी को नहीं बल्कि बेटे को ससुर के पास जाना पड़ता है। संक्षेप में कहें तो दामाद को ससुर के पास जाना पड़ता है। आपको यह जानकर थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन यह सच बात है। इस गांव में शादी करने के बाद लड़का घर का जमाई बनकर रह जाता है। तो आइए जानते हैं कहां आया यह गांव, क्या है इसकी परंपरा। जानने के लिए इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

jamai village

देश के ज्यादातर लोगों में यह रिवाज है कि शादी के बाद लड़की अपने ससुराल आती है। वहीं देश में एक ऐसा गांव भी है, जहां एक लड़का दामाद बनकर अपने ससुर के पास जाता है। इस गांव में कोई लड़की अपने ससुर के पास नहीं जाती। इस गांव का नाम है Kaushambi कौशाबी। जो Uttar Pradesh उत्तर प्रदेश में स्थित है। वैसे गांव का नाम है Hingulpur हिंगुलपुर। लेकिन यह गांव village of sons-in-law दामादों के गांव के नाम से काफी मशहूर है। इस गांव की और भी कई खासियतें हैं।

भ्रूण हत्या और दहेज के कारण उत्तर प्रदेश में कई हत्याएं हुईं। जिसके चलते यह उपाय किया गया है. दशकों पहले गांव के बुजुर्गों ने फैसला किया कि शादी के बाद लड़की पियर के पास ही रहेगी और गांव के लोगों ने इस फैसले को स्वीकार कर लिया। जब गांव की लड़कियां बड़ी होकर उसकी शादी की बात करती हैं तो पहली शर्त यही होती है कि बहू नहीं आएगी, बल्कि दामाद को आना होगा। इसकी वजह यह हो सकती है कि इससे लड़कियों की शादी नहीं हो पाती, इसलिए पहले से ही लड़कियों की शिक्षा पर फोकस किया जा रहा है। ऐसे में वहां लड़कियों को पढ़ाई के अलावा सिलाई जैसा काम भी सिखाया जाता है। जिससे लड़की को आर्थिक सहायता मिल सके।

इसके अलावा इस गांव में जमाई बनकर आने वाले लड़के को रोजगार मिले इसके लिए भी गांव के लोग मिलकर फैसला लेते हैं। इस गांव के आसपास के गांव जैसे कानपुर, फ़तेहपुर, प्रतापगढ़, इलाहाबाद और बंदना जमाई रहते हैं। वहां 18 से 70 साल तक की महिलाएं अपने पतियों के साथ रहती हैं। दामाद की पीढ़ी वहीं उसी घर में रहती है।

हालाँकि हिंगलपुर एकमात्र गाँव नहीं है जहाँ जमाई रहते हैं, मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय के पास भी एक ऐसा जमाई गाँव है। बिटली गांव को जमाई के गांव के नाम से जाना जाता है। वहां भी अधिकतर परिवार दूसरे प्रदेशों से आकर बसे हैं। इसके बाद वहां के लोगों ने अपनी लड़कियों की सुरक्षा के लिए उन्हें पियर में रखने का फैसला किया।

दूसरा कारण यह है कि अगर बेटी की शादी कहीं और हो जाए तो दूसरे परिवार के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल पाती है। कई बार अधूरी जानकारी के आधार पर भी रिश्ता बना लिया जाता है। ऐसे समय में रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाता और दोनों पक्ष परेशान रहते हैं। इस घटना से बचने के लिए कई जगहों पर दामाद को घर पर रखने की प्रथा थी।

इसके अलावा झारखंड में जमशेदपुर के आदित्यपुर को जमाई पाड़ा के नाम से भी जाना जाता है। जहां दामाद रहता है। 1960 के दशक में औद्योगीकरण के कारण लोगों को कारखानों में काम करने की आवश्यकता पड़ी। तो गांव के लोगों ने अपने दामाद को बुलाया। तभी से उनका नाम जमाई पाड़ा पड़ गया। जहां अब लड़कियां शादी के बाद ससुराल नहीं जाती बल्कि दामाद जाते हैं।

वहीं राजस्थान के चितोड़गढ़ जिले का एक छोटा सा गांव पालोद भी जामाई का गांव है। इस गांव के लोग अपनी बेटियों की शादी गांव से बाहर नहीं करते हैं। बुजुर्गों के मुताबिक अगर लड़की की शादी गांव में की जाए तो लड़की आंखों के सामने होगी। ताकि इसकी सुरक्षा की जा सके। दूसरा कारण यह है कि एक ही गांव में शादी करने से खेती, घरेलू काम, बच्चों की जिम्मेदारी आदि के लिए ट्रैक्टर लेने में एक-दूसरे की मदद की जा सकती है।

इसके अलावा हरियाणा के एक गांव सौदापुर ने भी इस प्रथा को अपनाया है। जिसका कारण यहां महिलाओं की हत्या है। इसे कम करने के लिए यह प्रथा अपनाई गई है। यहां तक ​​कि पानीपत से थोड़ी दूर स्थित इस गांव में भी अब दामादों की अच्छी आबादी है।

NOTE : यहां दी गई जानकारी एक सामान्य अनुमान और धारणा ओ के आधारित हे किसी भी जानाकरी कोई निष्कर्ष पर कृपया ना पोहचे। जानकारी के अनुरूप Expert की सलाह जरूर ले. धन्यवाद

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